श्रृंगार रस का अर्थ
श्रृंगार रस हिंदी काव्यशास्त्र का एक प्रमुख रस है, जो प्रेम, सौंदर्य और आकर्षण की भावना को व्यक्त करता है। यह रस मुख्य रूप से नायक-नायिका के प्रेम प्रसंग, प्रकृति के सौंदर्य, श्रृंगारिक भावनाओं और कोमल भावनाओं को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। इसे हिंदी साहित्य में सबसे मधुर और रोचक रस माना जाता है।
श्रृंगार रस का प्रयोग
श्रृंगार रस का प्रयोग काव्य, नाटक और साहित्य में प्रेमपूर्ण भावनाओं को उभारने के लिए किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है:
- संयोग श्रृंगार – जब नायक-नायिका का मिलन होता है और प्रेम परिपूर्ण अवस्था में होता है।
- विप्रलंभ श्रृंगार – जब प्रेमी और प्रेमिका एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, और उनके मन में विरह की पीड़ा उत्पन्न होती है।
श्रृंगार रस का प्रयोग कविताओं, दोहों, गीतों और लोकगीतों में बहुतायत से किया जाता है। यह काव्य में सौंदर्य, कोमलता और भावनात्मक गहराई लाने में सहायक होता है।
श्रृंगार रस के उदाहरण
- संयोग श्रृंगार
“काली घटा छाई, साजन घर आए,
मोर पपीहा गाए, मन हरषाए।”
(यहाँ नायिका अपने प्रियतम के आने से हर्षित हो रही है।) - विप्रलंभ श्रृंगार
“नैनन में बदरा छाए,
बिरहा की आग लगाई रे।”
(यहाँ नायिका अपने प्रिय के वियोग में दुखी हो रही है।)
श्रृंगार रस हिंदी साहित्य का हृदय माना जाता है, जो प्रेम और सौंदर्य की अभिव्यक्ति को नए आयाम देता है।
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