परिचय
मानक हिन्दी का शब्द भंडार अत्यंत समृद्ध और विस्तृत है, जिसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी सहित अन्य भाषाओं के शब्द शामिल हैं। यह शब्द भंडार हिन्दी भाषा की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक विविधता को दर्शाता है।
शब्द भंडार का विकास
- संस्कृत मूल के शब्द – हिन्दी का प्रमुख स्रोत संस्कृत रही है, जिससे ‘ज्ञान’, ‘विद्या’, ‘शक्ति’, ‘सत्य’ जैसे तत्सम और तद्भव शब्द विकसित हुए।
- प्राकृत एवं अपभ्रंश प्रभाव – बोलचाल की भाषा में आए परिवर्तन के कारण ‘राजा’ से ‘रजा’, ‘धर्म’ से ‘धरम’ जैसे शब्द विकसित हुए।
- फारसी और अरबी शब्द – मुगल काल के दौरान हिन्दी में ‘किताब’, ‘अदालत’, ‘इंसाफ’ जैसे कई शब्द सम्मिलित हुए।
- अंग्रेज़ी शब्द – आधुनिक हिन्दी में ‘टेलीफोन’, ‘कंप्यूटर’, ‘इंटरनेट’ जैसे अंग्रेज़ी शब्द आम हो गए हैं।
शब्द भंडार के प्रकार
- तत्सम शब्द – जो संस्कृत से बिना किसी बदलाव के लिए गए हैं। (जैसे – ज्ञान, धर्म, न्याय)
- तद्भव शब्द – जो संस्कृत से विकसित होकर बदल गए हैं। (जैसे – अग्नि → आग, अश्व → घोड़ा)
- देशज शब्द – जो किसी अन्य भाषा से नहीं लिए गए बल्कि जनसामान्य की भाषा में प्रचलित हैं। (जैसे – चूल्हा, खटिया, झोपड़ी)
- विदेशी शब्द – जो अन्य भाषाओं से हिन्दी में समाहित हुए हैं। (जैसे – कार, रेडियो, ट्रेन)
मानक हिन्दी के शब्द भंडार का महत्व
संपन्नता – हिन्दी के शब्द भंडार में विविध स्रोतों से लिए गए शब्द इसे समृद्ध बनाते हैं।
सर्वस्वीकार्य भाषा – मानक हिन्दी में सभी वर्गों और समुदायों के लिए सरलता होती है।
आधुनिकता और परंपरा का मेल – इसमें पारंपरिक और आधुनिक शब्दों का संतुलन बना रहता है।
तकनीकी और साहित्यिक उपयोगिता – यह विज्ञान, तकनीक, साहित्य और प्रशासन में उपयोगी है।
निष्कर्ष
मानक हिन्दी का शब्द भंडार ऐतिहासिक परंपरा, सांस्कृतिक समन्वय और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण है। यह निरंतर विकसित हो रहा है और इसकी व्यापकता इसे विश्वव्यापी भाषा बनाने में सहायक है।