खड़ी बोली का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास

परिचय

खड़ी बोली हिंदी भाषा की एक प्रमुख बोली है, जो आज आधुनिक हिंदी की आधारशिला मानी जाती है। खड़ी बोली का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि यह हिंदी साहित्य, प्रशासन और शिक्षा में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भाषा बन चुकी है।

खड़ी बोली का उद्भव और विकास

1. खड़ी बोली की उत्पत्ति

खड़ी बोली का उद्भव 10वीं-12वीं शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में हुआ। इसे पश्चिमी हिंदी की एक शाखा माना जाता है, जो ब्रज, अवधी और अन्य बोलियों से भिन्न है। यह मुख्य रूप से दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बोली जाती थी।

2. मध्यकाल में खड़ी बोली

मध्यकालीन भारत में, खड़ी बोली का साहित्यिक उपयोग सीमित था। उस समय ब्रजभाषा, अवधी और संस्कृत का वर्चस्व था। फिर भी, मुग़ल शासन के दौरान यह प्रशासनिक और व्यापारिक भाषा के रूप में उभरने लगी।

3. आधुनिक हिंदी का विकास

18वीं और 19वीं शताब्दी में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप दिया गया। भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और प्रेमचंद जैसे लेखकों ने इसे साहित्य में स्थापित किया।

साहित्यिक भाषा के रूप में खड़ी बोली का विकास

1. भारतेंदु युग (1850-1900)

  • भारतेंदु हरिश्चंद्र ने खड़ी बोली हिंदी को जनसाधारण की भाषा बनाकर साहित्य में इसका प्रयोग बढ़ाया।
  • उन्होंने हिंदी गद्य को समृद्ध किया और खड़ी बोली को साहित्य की भाषा के रूप में मान्यता दिलाई।

2. द्विवेदी युग (1900-1920)

  • इस दौर में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली को परिष्कृत किया और इसे उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा बनाया।
  • उन्होंने इसे व्याकरण और शैली की दृष्टि से सुसंगठित किया।

3. छायावाद और आगे का विकास (1920-1950)

  • जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवियों ने इसे काव्य भाषा के रूप में अपनाया।
  • खड़ी बोली हिंदी को आधुनिक हिंदी कविता और गद्य की भाषा के रूप में स्थापित किया गया।

4. समकालीन हिंदी साहित्य (1950-वर्तमान)

  • आज हिंदी साहित्य, सिनेमा, मीडिया और इंटरनेट की मुख्य भाषा बन चुकी है।
  • खड़ी बोली हिंदी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकृति मिली।

खड़ी बोली की विशेषताएँ

  1. सर्वग्राह्यता: इसे आसानी से समझा और सीखा जा सकता है।
  2. साधारणता: इसमें जटिल शब्दों की अपेक्षा सरल और सुगठित शब्दों का प्रयोग होता है।
  3. व्याकरण की स्पष्टता: इसकी व्याकरणिक संरचना स्पष्ट और व्यवस्थित है।
  4. अभिव्यक्ति की क्षमता: यह भावनाओं और विचारों को प्रभावी रूप से व्यक्त करने में सक्षम है।

निष्कर्ष

खड़ी बोली न केवल साहित्य की भाषा बनी, बल्कि यह प्रशासन, शिक्षा और संचार की भी मुख्य भाषा बन गई। इसका साहित्यिक विकास भारतीय भाषाई परंपरा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

FAQs

Q1. खड़ी बोली क्या है?

उत्तर: खड़ी बोली हिंदी भाषा की एक प्रमुख बोली है, जो आधुनिक हिंदी का आधार बनी। यह उत्तर भारत में मुख्य रूप से बोली जाती है।

Q2. खड़ी बोली का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास कब हुआ?

उत्तर: 18वीं और 19वीं शताब्दी में भारतेंदु हरिश्चंद्र और महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रयासों से खड़ी बोली का साहित्यिक विकास हुआ।

Q3. खड़ी बोली और ब्रजभाषा में क्या अंतर है?

उत्तर: खड़ी बोली हिंदी की एक सीधी और सरल बोली है, जबकि ब्रजभाषा अधिक काव्यात्मक और संगीतमय है।

Q4. खड़ी बोली हिंदी भाषा का आधार कैसे बनी?

उत्तर: इसकी सरलता, व्याकरण की स्पष्टता और व्यापक स्वीकृति ने इसे आधुनिक हिंदी भाषा का आधार बना दिया।

Q5. कौन-कौन से साहित्यकार खड़ी बोली के प्रमुख लेखक हैं?

उत्तर: भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत प्रमुख खड़ी बोली के साहित्यकार हैं।

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