1. परिचय: बाल मनोविज्ञान में पियाजे की क्रांति
जीन पियाजे (1896-1980) को “बाल मनोविज्ञान का जनक” माना जाता है। उन्होंने बच्चों की सोच और सीखने की प्रक्रिया को समझने के लिए एक वैज्ञानिक ढाँचा प्रस्तुत किया, जो आज भी शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर है। पियाजे का मानना था कि बच्चे सक्रिय खोजकर्ता होते हैं, जो अपने पर्यावरण के साथ अंत:क्रिया करके ज्ञान निर्मित करते हैं।
हुक: “क्यों 21वीं सदी के डिजिटल युग में भी पियाजे का सिद्धांत शिक्षकों और मनोवैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है?”
2. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के चार चरण
पियाजे ने बच्चों के मानसिक विकास को चार चरणों में बाँटा। ये चरण सार्वभौमिक हैं, लेकिन आयु सीमा में लचीलापन हो सकता है।
क. संवेदी-गामक चरण (Sensorimotor Stage: 0-2 वर्ष)
- मुख्य विशेषता: इंद्रियों और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से दुनिया को समझना।
- वस्तु स्थायित्व (Object Permanence): 8-12 महीने में बच्चा यह समझता है कि वस्तुएँ देखने में न आने पर भी मौजूद रहती हैं।
- उदाहरण: माँ चेहरे पर रूमाल रखकर “कू-कू” खेलती है, बच्चा रूमाल हटाकर उसे ढूँढता है।
- लक्ष्य-उन्मुख व्यवहार: गिरा हुआ खिलौना उठाने के लिए क्रॉल करना।
ख. पूर्व-संक्रियात्मक चरण (Preoperational Stage: 2-7 वर्ष)
- अहंकेंद्रित सोच (Egocentrism): दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में असमर्थता।
- उदाहरण: बच्चा मानता है कि सभी को उसकी पसंद का खिलौना पसंद आएगा।
- प्रतीकात्मक खेल (Symbolic Play): काल्पनिक परिदृश्य बनाना (जैसे, डॉल्फ़ को “बेटी” बनाना)।
- जीववाद (Animism): निर्जीब वस्तुओं में जीवन का आरोपण (जैसे, “चाँद मुझे देख रहा है”)।
ग. मूर्त संक्रियात्मक चरण (Concrete Operational Stage: 7-11 वर्ष)
- संरक्षण (Conservation): पदार्थ की मात्रा को आकार बदलने पर भी समझना।
- प्रयोग: एक ही मात्रा का पानी लंबे और पतले गिलास में डालकर पूछें, “किसमें अधिक है?” इस उम्र के बच्चे सही उत्तर देते हैं।
- वर्गीकरण और क्रमबद्धता: वस्तुओं को रंग, आकार, या आकार के आधार पर व्यवस्थित करना।
घ. औपचारिक संक्रियात्मक चरण (Formal Operational Stage: 11+ वर्ष)
- अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking): काल्पनिक और दार्शनिक प्रश्न पूछना (जैसे, “न्याय क्या है?”)।
- परिकल्पनात्मक निगमन (Hypothetical-Deductive Reasoning): “यदि-तो” पर आधारित समस्याओं का समाधान करना।
- उदाहरण: विज्ञान प्रयोगों में परिकल्पना का परीक्षण।
3. पियाजे के सिद्धांत की मूल अवधारणाएँ
क. स्कीमा (Schema):
ज्ञान की मानसिक संरचना। जैसे, एक बच्चे का “पक्षी” का स्कीमा उड़ने वाले जीवों तक सीमित होता है, लेकिन पेंगुइन को देखकर वह इसे संशोधित करता है।
ख. समायोजन (Adaptation):
- आत्मसात्करण (Assimilation): नई जानकारी को मौजूदा स्कीमा में फिट करना।
- उदाहरण: बच्चा गाय को “कुत्ता” कहता है क्योंकि दोनों चार पैर वाले हैं।
- समंजन (Accommodation): नए स्कीमा बनाना या पुराने को बदलना।
- उदाहरण: माता-पिता गाय और कुत्ते में अंतर समझाते हैं।
ग. संतुलन (Equilibrium):
आत्मसात्करण और समंजन के बीच सामंजस्य बनाने की प्रक्रिया।
4. भारतीय संदर्भ में केस स्टडीज
क. ग्रामीण भारत में संज्ञानात्मक विकास:
- NCERT (2023) की रिपोर्ट: 45% ग्रामीण बच्चे मूर्त संक्रियात्मक चरण में 9-10 वर्ष की उम्र में पहुँचते हैं, जबकि शहरी बच्चों में यह 7-8 वर्ष है। कारण: शैक्षिक संसाधनों की कमी और पोषण असंतुलन।
ख. मोंटेसरी शिक्षा में पियाजे का प्रभाव:
- हाथों से सीखना (Learning by Doing): बच्चे गिनती सीखने के लिए मूँग के दानों का उपयोग करते हैं। यह मूर्त संक्रियात्मक चरण के सिद्धांत को दर्शाता है।
5. आलोचनाएँ और आधुनिक संशोधन
क. वाइगोत्स्की का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत:
- ज़ोन ऑफ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट (ZPD): वाइगोत्स्की के अनुसार, सीखना सामाजिक संपर्क से होता है, न कि केवल स्वतंत्र अन्वेषण से।
ख. न्यूरोसाइंस अनुसंधान (2024):
- प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स का विकास: MRI स्कैन से पता चला है कि इस क्षेत्र का विकास औपचारिक संक्रियात्मक चरण के साथ सिंक्रोनाइज़ होता है।
6. FAQs: पियाजे के सिद्धांत से जुड़े सामान्य प्रश्न
- Q: क्या सभी बच्चे एक ही उम्र में पियाजे के चरण पूरे करते हैं?
A: नहीं। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, और पारिवारिक वातावरण के कारण भिन्नता हो सकती है। - Q: पियाजे और वाइगोत्स्की में मुख्य अंतर क्या है?
A: पियाजे स्वतंत्र अन्वेषण पर जोर देते हैं, जबकि वाइगोत्स्की सामाजिक मार्गदर्शन को महत्व देते हैं। - Q: डिजिटल युग में पियाजे का सिद्धांत कैसे प्रासंगिक है?
A: एजुकेशनल ऐप्स (जैसे, BYJU’S) में इंटरैक्टिव गेम्स बच्चों को हाथों से सीखने का अवसर देते हैं, जो पियाजे के सिद्धांत को दर्शाता है।
8. निष्कर्ष: आधुनिक शिक्षा में पियाजे की विरासत
पियाजे का सिद्धांत केवल एक मनोवैज्ञानिक मॉडल नहीं, बल्कि शिक्षण की रीढ़ है। चाहे वह प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग हो या STEM शिक्षा, पियाजे के सक्रिय सीखने के सिद्धांत को आधुनिक पाठ्यक्रमों में समाहित किया गया है। जैसा कि पियाजे ने कहा था:
“बच्चे छोटे वैज्ञानिक होते हैं, जो लगातार परिकल्पनाएँ बनाते और परखते हैं।”
इसलिए, शिक्षकों और अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को खोजने और गलतियाँ करने का अवसर दें—यही सच्ची सीख है!
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- विशेषज्ञ स्रोत:
- पियाजे की पुस्तक The Psychology of the Child।
- NCERT की रिपोर्ट “भारत में बाल विकास” (2023)।
- जर्नल ऑफ कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस (2024)।
- प्रामाणिक लिंक्स: ncert.nic.in, apa.org।