अष्टाछाप से आप क्या समझते हैं?

अष्टाछाप हिंदी साहित्य के भक्तिकाल का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह विशेष रूप से कृष्णभक्ति से जुड़े आठ प्रमुख कवियों का समूह था, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अद्वितीय योगदान दिया। अष्टाछाप शब्द दो शब्दों – “अष्ट” और “छाप” से मिलकर बना है, जहां “अष्ट” का अर्थ आठ और “छाप” का अर्थ है कवियों की पहचान या रचना-शैली। यह समूह वल्लभ संप्रदाय से संबंधित था और इन कवियों ने श्रीनाथजी (कृष्ण) की भक्ति को अपना आधार बनाकर साहित्य में अमूल्य रचनाएँ कीं।

अष्टाछाप का परिचय

अष्टाछाप का निर्माण 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ द्वारा किया गया था। वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग नामक भक्ति संप्रदाय की स्थापना की थी, जिसमें कृष्ण की आराधना और सेवा को जीवन का मुख्य उद्देश्य माना जाता था। विट्ठलनाथ ने आठ कवियों का चयन किया और उन्हें श्रीनाथजी की सेवा और गुणगान के लिए नियुक्त किया। इन आठ कवियों को “अष्टाछाप” के नाम से जाना जाने लगा, जिनकी भक्ति और काव्य में कृष्ण की बाल-लीला, प्रेम और मधुरता का वर्णन मिलता है।

अष्टाछाप के आठ कवि

अष्टाछाप के कवि मुख्यतः निम्नलिखित थे

  1. सूरदास: अष्टाछाप के सबसे प्रमुख कवि, जिन्हें श्रीकृष्ण की बाल-लीला और वात्सल्य-रस की कविताओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। उनके द्वारा रचित ‘सूरसागर’ भक्तिकाल की एक महान रचना है।
  2. कुंभनदास: इनकी कविताओं में साधारण जीवन का चित्रण मिलता है। उन्होंने भक्ति में मधुरता और भावुकता का समावेश किया।
  3. परमानंददास: इन्होंने कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का विस्तृत वर्णन किया।
  4. कृष्णदास: इनकी रचनाओं में कृष्ण की महिमा और उनकी लीलाओं का गहन चित्रण किया गया है।
  5. नंददास: नंददास जी ने कृष्ण भक्ति को एक उच्च स्तर पर पहुँचाया। उनकी रचनाओं में प्रेम और समर्पण का अद्भुत मिश्रण मिलता है।
  6. छीतस्वामी: इन्होंने भक्ति को हृदय की गहराईयों से अनुभव किया और इसी भाव में काव्य रचना की।
  7. गोविंदस्वामी: इनकी रचनाएँ भी भक्ति और रस से भरपूर हैं, और इनका वर्णन अष्टाछाप में विशेष माना जाता है।
  8. चित्तस्वामी: इनके काव्य में साधारण जीवन की सरलता और कृष्ण की भक्ति का समावेश था।

अष्टाछाप की विशेषताएँ

1. कृष्णभक्ति पर आधारित रचनाएँ

अष्टाछाप के कवियों की कविताओं में श्रीकृष्ण की भक्ति के विविध रूप देखे जा सकते हैं। यह कवि वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के अनुयायी थे और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से कृष्ण की बाल-लीलाओं, प्रेम, वात्सल्य और माधुर्य का चित्रण किया।

2. लोकजीवन का प्रभाव

इन कवियों की रचनाओं में ग्रामीण जीवन, साधारण जनमानस और कृष्ण भक्ति का सम्मिश्रण मिलता है। ये कविताएँ आम जनों के लिए सरल भाषा में होती थीं और इनमें गहरी भावना होती थी, जिससे सभी पाठकों को भक्ति का अनुभव मिलता था।

3. सामाजिक समरसता का सन्देश

अष्टाछाप के कवियों ने जाति, धर्म, और वर्ग से ऊपर उठकर भक्ति का सन्देश दिया। इनकी कविताओं में सभी के लिए एक समरसता का भाव दिखता है।

अष्टाछाप की साहित्यिक भूमिका

अष्टाछाप ने हिंदी साहित्य में भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। इन कवियों की रचनाएँ साहित्य में भक्तिकाल का महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। अष्टाछाप के कवि एक तरफ भक्ति-भावना को मजबूत बना रहे थे तो दूसरी ओर हिंदी साहित्य में शुद्ध भक्ति और काव्य-शैली को स्थायित्व प्रदान कर रहे थे। इन्होंने भक्ति साहित्य को एक मजबूत आधार प्रदान किया, जो सदियों तक पढ़ा और सराहा गया।

निष्कर्ष

अष्टाछाप का भारतीय साहित्य में विशेष स्थान है। यह केवल आठ कवियों का समूह नहीं है, बल्कि कृष्ण भक्ति का एक उच्च उदाहरण है। इन कवियों की रचनाओं में कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम, भक्ति, और माधुर्य का अनूठा समागम देखने को मिलता है। अष्टाछाप के कवि अपनी गहरी भक्ति, सरल भाषा, और कृष्ण लीला के अद्भुत चित्रण के लिए आज भी हिंदी साहित्य में अमर हैं।

इस प्रकार अष्टाछाप के आठ कवियों ने अपने-अपने अंदाज में कृष्ण भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया और हिंदी साहित्य को अपनी अमूल्य रचनाओं से समृद्ध किया।

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