
राष्ट्रीय बाल नीति 1974 भारत सरकार द्वारा विकसित पहली समग्र बाल कल्याण नीति थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश के बालकों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना था। राष्ट्रीय बाल नीति 1974 का मुख्य फोकस बालक स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, सुरक्षा एवं कल्याण पर था। इस नीति ने संविधान के अनुच्छेद 39(f) तथा 45 के अंतर्गत बालकों का संरक्षण और पोषण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी को कानूनी रूप से पुष्ट किया। इस लेख में हम राष्ट्रीय बाल नीति 1974 के उद्देश्य और उनके विश्लेषण के साथ-साथ इसके कार्यान्वयन, चुनौतियाँ और प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- संविधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 39(f) के अनुसार, राज्य का कर्तव्य है कि वह बालकों के पोषण और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करे। अनुच्छेद 45 प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक और अनिवार्य बनाने का दिशानिर्देश देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: 1989 में अपनाया गया संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ द चिल्ड (UNCRC) ने बाल अधिकारों की वैश्विक रूपरेखा दी। भारत ने 1992 में इस संधि को स्वीकार किया। राष्ट्रीय बाल नीति 1974 ने इन दिशानिर्देशों के आधार पर देश में बाल कल्याण की नींव रखी।
- पूर्व नीतियाँ एवं कार्यक्रम: स्वतंत्रता के बाद राज्य ने बाल शिक्षा (1950 के दशक में प्राथमिक शिक्षा योजनाएँ) और पोषण (1955 में बाल्य पोषण योजना) संबंधी कार्यक्रम आरंभ किए, पर नीति का समग्र स्वरूप राष्ट्रीय बाल नीति 1974 में ही आया।
राष्ट्रीय बाल नीति 1974 का विकास
- समिति गठन: 1973 में मंत्रालय ने बाल विकास के विशेषज्ञों की समिति गठित की, जिसने बालों के पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण की मौजूदा स्थिति का सर्वेक्षण किया।
- सामुदायिक आधारित दृष्टिकोण: नीति ने पंचायती राज संस्थाओं और गैर सरकारी संगठनों को कार्यान्वयन में शामिल किया, ताकि कार्यक्रमों का लाभ Grassroots स्तर तक पहुँच सके।
- समन्वित कार्यक्रम: पॉलिसी ने विभिन्न मंत्रालयों (स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास) के कार्यक्रमों को एकीकृत करने पर बल दिया।
राष्ट्रीय बाल नीति 1974 के प्रमुख उद्देश्य
राष्ट्रीय बाल नीति 1974 ने निम्नलिखित 6 प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किए:
- स्वास्थ्य और पोषण सुनिश्चित करना
- सभी बालकों को पर्याप्त और संतुलित आहार उपलब्ध कराना।
- सांसारिक स्वास्थ्य सेवाओं (टीकाकरण, प्राथमिक चिकित्सा) की व्यवस्था करना।
- प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच
- 6–14 वर्ष तक के सभी बालकों के लिए अनिवार्य, निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा।
- शिक्षा में लिंग या वर्ग आधारित भेदभाव का उन्मूलन।
- बाल श्रम और शोषण रोकना
- 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को श्रम के दुष्प्रभावों से बचाना।
- विकलांग बालकों एवं विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों की सुरक्षा।
- परिवार एवं समुदाय आधारित कल्याण
- परिवार को बाल पालन-पोषण में प्रशिक्षण, परामर्श प्रदान करना।
- सामुदायिक स्वास्थ्य एवं पोषण समितियाँ गठित करना।
- बालकों के अधिकारों का संवैधानिक संरक्षण
- नीति के माध्यम से बाल अधिकारों को कानूनी स्वरूप देना।
- बाल संरक्षण उप-समितियाँ एवं कार्यशालाएँ आयोजित करना।
- प्रति
- नीति के क्रियान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन तंत्र स्थापित करना।
- डेटा संग्रह, रिपोर्टिंग और नीतिगत सुधारों के लिए फीडबैक लूप तैयार करना।
उद्देश्यों का विश्लेषण
1. स्वास्थ्य और पोषण
- वास्तविक स्थिति: 1970 के दशक की शुरुआत में भारत में बाल कुपोषण दर 60% से अधिक थी।
- नीति के उपाय: ग्रामस्तर पर आँगनवाड़ी केंद्र (ICDS) की स्थापना, मासिक पोषण अनुदान।
- परिणाम: 1985 तक कुपोषण दर में 15% की गिरावट आई, टीकाकरण कवरेज 50% से बढ़कर 70% हुआ।
2. प्राथमिक शिक्षा
- वर्नाक्युलर स्कूलों का विकास: नीति ने स्थानीय भाषा में शिक्षा पर जोर दिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तीर्णता दर बढ़ी।
- लिंग समानता: बालिकाओं का नामांकन 30% से बढ़कर 45% हुआ, जिससे लिंग अनुपात में सुधार देखा गया।
3. बाल श्रम रोकथाम
- कानूनी प्रावधान: बाल श्रम (प्रतिबंधन और विनियमन) अधिनियम, 1973 का समन्वय।
- समाज जागरूकता: पंचायत स्तर पर ‘बाल श्रम मुक्त गाँव’ अभियान लागू किया गया।
4. पारिवारिक भूमिका
- मातृत्व एवं बाल विकास (MCH) कार्यक्रम: गर्भवती महिलाओं को पोषण व स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण।
- समुदाय आधारित केंद्र: स्वास्थ्य स्वयंसेवक (ASHA) की तैनाती से दूरदराज़ इलाकों में पहुँच आसान हुई।
5. कानूनी संरक्षण
- बाल संरक्षण समितियाँ: जिला स्तर पर गठित, जहाँ बाल दुर्व्यवहार की शिकायतों का निवारण किया गया।
- नीति समीक्षा व अद्यतन: दशकीय अंतराल पर नीतिगत समीक्षा, जिससे नए सामाजिक परिवर्तनों को शामिल किया गया।
6. निगरानी व मूल्यांकन
- डेटा संग्रह: आँगनवाड़ी कार्यकर्ताएँ मासिक रिपोर्ट तैयार करती थीं।
- रिपोर्टिंग तंत्र: राज्य और केंद्र सरकार को समय-समय पर प्रदर्शन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
कार्यान्वयन की रणनीतियाँ
- समुदाय आधारित मॉडल: ग्राम पंचायत, स्वयं सहायता समूह, और NGOs के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना।
- अंतर-मंत्रालयी समन्वय: स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला एवं बाल विकास मंत्रालयों के बीच तालमेल।
- वित्तीय अनुदान: विशेष कोष (ICDS कोष) की स्थापना, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों का योगदान।
- प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण: आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं शिक्षकों को नियमित प्रशिक्षण।
प्रमुख कार्यक्रम एवं पहल
कार्यक्रम/पहल | वर्ष | उद्देश्य |
---|---|---|
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र | 1975 | प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना |
आँगनवाड़ी केंद्र (ICDS) | 1975 | पोषण व शिक्षा के लिए अंगनबाड़ी सेवाएं |
बाल मित्र विद्यालय | 1976 | बालकों को सामुदायिक स्तर पर शिक्षा उपलब्ध कराना |
मातृत्व एवं बाल कल्याण (MCH) | 1974 | गर्भवती माताओं व नवजात शिशुओं की देखभाल |
चुनौतियाँ व सीमाएँ
- वित्तीय संसाधनों की कमी: प्रारंभिक वर्षों में बजट आवंटन अपर्याप्त था।
- मानव संसाधन का अभाव: प्रशिक्षणित कार्यकर्ता तथा शिक्षक कम थे।
- सामाजिक मान्यताएँ: बालिकाओं की शिक्षा को लेकर रूढ़िवादी सोच।
- भौगोलिक बाधाएँ: पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में सेवा वितरण में कठिनाइयाँ।
नीति का प्रभाव एवं परिणाम
- सांख्यिकीय सुधार: 1990 तक बाल मृत्यु दर में 40% की कमी, कुपोषित बालकों की संख्या में 20% की गिरावट।
- शैक्षिक उपलब्धियाँ: साक्षरता दर 45% से बढ़कर 60% (पुरुष: 65%, महिला: 55%) हुई।
- सामाजिक जागरूकता: बाल अधिकारों पर राष्ट्रीय चर्चाएं और कानूनों में संशोधन (POSCO अधिनियम 2012)।
समकालीन प्रासंगिकता
- 2020 तक नीति के उद्देश्यों ने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बाल स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर निवेश को 2.5% तक पहुँचाया।
- 2019 में जारी “राष्ट्रीय बाल अधिकार अधिनियम” ने 1974 नीति के उद्देश्यों को और सुदृढ़ किया।
- यूनिसेफ रिपोर्ट (2021) में भारत के बाल विकास सूचकांक में सुधार पाया गया, जहां भारत ने 134 देशों में 102वां स्थान प्राप्त किया।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय बाल नीति 1974 ने भारत में बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए एक ठोस रूपरेखा प्रदान की। इसके उद्देश्य—स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, सुरक्षा, कानूनी संरक्षण और निगरानी—ने देश में बाल कल्याण पर केंद्रित सरकारी व सामुदायिक प्रयासों को मार्गदर्शन दिया। यद्यपि प्रारंभिक वर्षों में चुनौतियाँ थीं, पर निरंतर समीक्षा, वित्तीय अनुदान, और समुदाय आधारित कार्यपद्धति ने नीति को साकारात्मक परिणाम दिलाए। आने वाले दशकों में इन उद्देश्यों को और उन्नत करने के लिए सालाना नीतिगत अद्यतन, डेटा आधारित मूल्यांकन तथा वैश्विक बाल अधिकारों के अनुरूप संशोधन आवश्यक हैं।