जनसंचार का गेटकीपिंग सिद्धांत

प्रस्तावना

जनसंचार का गेटकीपिंग सिद्धांत: जनसंचार के क्षेत्र में सूचना के प्रवाह, चयन एवं प्रसार की प्रक्रिया को समझने के लिए “गेटकीपिंग” एक महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है। यह सिद्धांत बताता है कि किस प्रकार समाचार, जानकारी और संदेशों को किसी मीडिया संगठन में एक छानबीन, चयन एवं प्रसार की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। गेटकीपिंग का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि मीडिया के संपादक, पत्रकार, प्रोड्यूसर एवं अन्य गेटकीपर किस तरह से सूचना का चुनाव करते हैं और किन मानदंडों के आधार पर यह निर्णय लिया जाता है कि कौन सी खबरें जनता तक पहुँचेंगी और कौन सी नहीं।

इस लेख में हम गेटकीपिंग के सिद्धांत को गहन रूप से समझने का प्रयास करेंगे। हम देखेंगे कि इस सिद्धांत की उत्पत्ति, विकास एवं मौजूदा परिप्रेक्ष्य क्या हैं, और किस प्रकार विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक एवं तकनीकी कारक इसके प्रभाव को निर्धारित करते हैं। साथ ही, हम डिजिटल युग में गेटकीपिंग की भूमिका में आए परिवर्तनों, इसकी आलोचनाओं एवं इसके निहित सामाजिक संदेशों का विश्लेषण भी करेंगे।

1. गेटकीपिंग सिद्धांत की परिभाषा एवं मूल विचार

1.1 गेटकीपिंग का अर्थ

गेटकीपिंग शब्द ‘गेट’ (द्वार) और ‘कीपिंग’ (रखरखाव) से मिलकर बना है। जनसंचार में इसका अर्थ है – सूचना के प्रवेश द्वार पर मौजूद व्यक्ति या संगठन द्वारा यह तय करना कि किस सूचना को आगे प्रसारित किया जाए और किस सूचना को रोक दिया जाए। इस प्रक्रिया में मीडिया के विभिन्न घटक जैसे कि संपादकीय टीम, पत्रकारिता के मानदंड, सामाजिक मान्यताएँ एवं राजनीतिक दबाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

1.2 सिद्धांत का विकास

गेटकीपिंग सिद्धांत की उत्पत्ति 1940-50 के दशकों में हुई, जब मीडिया के केंद्रियकरण एवं संपादकीय नियंत्रण की प्रक्रिया को लेकर शोधकर्ता इस बात का अध्ययन करने लगे कि समाचारों का चयन कैसे किया जाता है। एडवर्ड्स हरेल और शार्ल्स मित्स द्वारा किए गए शोध के आधार पर इस सिद्धांत को विस्तार से प्रस्तुत किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार, सूचना के चयन में कई कारक – आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक – भूमिका निभाते हैं।

1.3 मूल विचार एवं उद्देश्य

गेटकीपिंग सिद्धांत का मूल उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि किसी भी मीडिया आउटलेट में उपलब्ध सीमित संसाधनों, समय एवं स्थान के कारण सभी जानकारी को प्रसारित करना संभव नहीं होता। इसलिए, गेटकीपर उन सूचनाओं का चयन करते हैं जिन्हें वे सबसे अधिक महत्वपूर्ण, प्रासंगिक एवं दर्शनीय मानते हैं। यह प्रक्रिया न केवल सूचना के चयन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की मांग करती है, बल्कि समाज में सूचना के प्रभाव, प्रभावशालीता एवं संभावित पक्षपात की भी पड़ताल करती है।

2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं विकास

2.1 प्रारंभिक अवधारणा

19वीं और 20वीं सदी में जब समाचार पत्रों एवं रेडियो ने जनसंचार के प्रमुख साधन के रूप में अपनी जगह बनाई, तब सूचना का चयन एवं प्रसार एक केंद्रित प्रक्रिया थी। पत्रकारों और संपादकों द्वारा समाचारों का चयन करना और उन्हें प्रसारित करने की प्रक्रिया को ही गेटकीपिंग कहा गया। उस समय की सीमित तकनीकी सुविधाओं, आर्थिक दबाव एवं राजनीतिक प्रभावों ने सूचना के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2.2 मिडिया संरचनाओं में बदलाव

जैसे-जैसे मीडिया संरचनाओं में बदलाव आया – विशेषकर टेलीविजन, इंटरनेट एवं डिजिटल मीडिया के आगमन के साथ – गेटकीपिंग की प्रक्रिया में भी परिवर्तन देखने को मिला। अब सूचना का प्रसार तेजी से होता है और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं की भागीदारी से सूचना के चयन के नए मानदंड विकसित हो रहे हैं। परंपरागत गेटकीपिंग अब भी मौजूद है, परन्तु सोशल मीडिया एवं यूजर-जनित कंटेंट के आगमन ने इसे चुनौती दी है।

2.3 डिजिटल युग में गेटकीपिंग

डिजिटल युग में गेटकीपिंग की प्रक्रिया में दो प्रमुख परिवर्तन देखे गए हैं:

  • डिजिटल गेटकीपिंग:
    डिजिटल प्लेटफार्मों पर एल्गोरिदम आधारित चयन, जहाँ सूचना का प्रसार डेटा, उपयोगकर्ता की पसंद एवं ट्रेंड के आधार पर होता है।
  • यूजर-जनित कंटेंट एवं वैरिफिकेशन:
    सोशल मीडिया पर प्रत्येक उपयोगकर्ता स्वयं गेटकीपर का कार्य कर सकता है, जिससे सूचना का चुनाव अधिक विकेंद्रीकृत हो गया है। लेकिन इस प्रक्रिया में फेक न्यूज, अफवाहें एवं गलत सूचना की समस्या भी उत्पन्न हुई है।

3. गेटकीपिंग के घटक एवं कारक

3.1 आर्थिक कारक

आर्थिक दबाव, विज्ञापन की आवश्यकताएँ एवं बजट प्रतिबंध सूचना के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • विज्ञापन एवं राजस्व:
    मीडिया हाउस विज्ञापन राजस्व के लिए कुछ ख़ास खबरों का चयन करते हैं, जो विज्ञापनदाताओं के हित में हों।
  • संसाधन प्रतिबंध:
    सीमित संसाधनों के कारण संपादकीय टीम को चुनिंदा खबरों पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है।

3.2 राजनीतिक एवं वैचारिक कारक

राजनीतिक दबाव एवं वैचारिक प्रवृत्तियाँ भी गेटकीपिंग प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं।

  • सरकारी दबाव:
    राजनीतिक पार्टियों, सरकारी एजेंसियों एवं नीतिगत दबाव के कारण कुछ खबरों को प्राथमिकता दी जाती है या कुछ खबरों को हटा दिया जाता है।
  • सामाजिक मान्यताएँ:
    समाज में व्याप्त परंपरागत मान्यताएँ, धार्मिक दृष्टिकोण एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य भी सूचना के चयन में प्रभाव डालते हैं।

3.3 तकनीकी कारक

तकनीकी उपकरणों एवं डिजिटल एल्गोरिदम का उपयोग भी गेटकीपिंग की प्रक्रिया में नई दिशाएँ प्रदान करता है।

  • एल्गोरिदमिक चयन:
    डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म पर एल्गोरिदम के माध्यम से उपयोगकर्ता की प्राथमिकताओं, क्लिक रेट एवं व्यूज के आधार पर सूचना का चयन किया जाता है।
  • सोशल मीडिया के प्रभाव:
    उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया, लाइक्स, शेयर एवं कमेंट्स सूचना के चयन में नए मानदंड स्थापित करते हैं, जिससे पारंपरिक गेटकीपिंग की प्रक्रिया बदल रही है।

3.4 सांस्कृतिक एवं सामाजिक कारक

सामाजिक संदर्भ एवं सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर भी सूचना के चयन में अंतर देखने को मिलता है।

  • भाषा एवं संचार शैली:
    विभिन्न भाषाओं, संवाद शैलियों एवं सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग सूचना के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जनमानस एवं लोक मान्यताएँ:
    समाज के आम विचार, रूढ़िवादिता एवं जनता की मानसिकता गेटकीपिंग के निर्णयों को प्रभावित करती है।

4. गेटकीपिंग की प्रक्रिया एवं चरण

4.1 सूचना का चयन एवं छंटाई

गेटकीपिंग की प्रक्रिया का पहला चरण है – सूचना का चयन।

  • सूचना का संकलन:
    पत्रकार, संवाददाता एवं संपादकीय दल विभिन्न स्रोतों से सूचना एकत्र करते हैं।
  • मूल्यांकन एवं छंटाई:
    प्राप्त सूचना में से महत्वपूर्ण, प्रासंगिक एवं विश्वसनीय खबरों का चयन किया जाता है। इस चरण में राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारकों का ध्यान रखा जाता है।

4.2 संपादन एवं प्रसंस्करण

चयनित सूचना का संपादन एवं प्रसंस्करण भी गेटकीपिंग की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है।

  • संपादकीय निर्णय:
    संपादक यह निर्णय लेते हैं कि किस सूचना को किस प्रकार के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए।
  • संवाद शैली एवं टोन:
    समाचार की भाषा, शैली एवं टोन को इस बात के अनुसार तय किया जाता है कि वह दर्शकों में किस प्रकार का प्रभाव छोड़ सके।

4.3 प्रसारण एवं वितरण

अंतिम चरण में, संपादित सूचना को विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रसारित किया जाता है।

  • मीडिया आउटलेट का चयन:
    समाचार पत्र, टेलीविजन, रेडियो या डिजिटल प्लेटफार्म पर सूचना का वितरण होता है।
  • प्रतिक्रिया एवं फीडबैक:
    दर्शकों की प्रतिक्रिया एवं फीडबैक के आधार पर भविष्य में सूचना के चयन एवं प्रसारण में सुधार किया जाता है।

5. गेटकीपिंग में पत्रकारिता का योगदान

5.1 पत्रकारों की भूमिका

पत्रकार गेटकीपिंग की प्रक्रिया के प्रमुख अंग होते हैं, जो सूचना के चयन एवं प्रसारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • सूचना के स्रोत:
    पत्रकार विभिन्न स्रोतों से सूचना एकत्र करते हैं और उसका सत्यापन करते हैं।
  • नैतिकता एवं जवाबदेही:
    पत्रकारिता में नैतिकता, निष्पक्षता एवं जवाबदेही के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है, जिससे गेटकीपिंग प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।

5.2 संपादकीय नीति एवं दिशानिर्देश

संपादकीय टीम के द्वारा अपनाई गई नीति एवं दिशानिर्देश सूचना के चयन में महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

  • नीतिगत मानदंड:
    संपादकीय मानदंड यह तय करते हैं कि किस प्रकार की खबरें, कहानियाँ एवं विश्लेषण दर्शकों तक पहुँचाए जाएँ।
  • संपादकीय स्वतंत्रता:
    पत्रकारों एवं संपादकों की स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं आर्थिक दबावों के बावजूद, सूचना के चयन में निष्पक्षता बनाए रखने का आधार है।

6. डिजिटल युग में गेटकीपिंग के परिवर्तन

6.1 सोशल मीडिया एवं उपयोगकर्ता सहभागिता

डिजिटल युग ने गेटकीपिंग की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।

  • यूजर-जनित कंटेंट:
    सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर हर उपयोगकर्ता स्वयं सूचना का निर्माता एवं वितरक बन गया है, जिससे पारंपरिक गेटकीपिंग की प्रक्रिया विकेंद्रीकृत हो गई है।
  • एल्गोरिदमिक चयन:
    डिजिटल प्लेटफार्म एल्गोरिदम के माध्यम से उपयोगकर्ता के व्यवहार, पसंद एवं ट्रेंड के आधार पर सूचना का चयन करते हैं, जो पारंपरिक संपादकीय निर्णयों से भिन्न है।

6.2 फेक न्यूज एवं सूचना का दुरुपयोग

डिजिटल युग में सूचना के अत्यधिक प्रसार ने फेक न्यूज एवं गलत सूचना की समस्या को भी जन्म दिया है।

  • वैरिफिकेशन की चुनौती:
    यूजर-जनित कंटेंट में सत्यापन की कमी, गलत सूचना के प्रसार में तेजी ला सकती है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में भ्रम एवं अस्थिरता फैल सकती है।
  • नियामक प्रयास:
    सरकारें एवं तकनीकी कंपनियाँ इस समस्या के समाधान के लिए वैरिफिकेशन तकनीकों एवं नियंत्रण प्रणालियों का विकास कर रही हैं।

7. गेटकीपिंग के आलोचनात्मक दृष्टिकोण

7.1 पक्षपात एवं चयनात्मक जानकारी

गेटकीपिंग प्रक्रिया पर अक्सर आरोप लगाया जाता है कि यह सूचना के चयन में पक्षपातपूर्ण हो सकती है।

  • राजनीतिक दबाव:
    सरकारी दबाव एवं राजनीतिक हितों के कारण कुछ खबरें जानबूझकर न प्रसारित की जाती हैं।
  • आर्थिक हित:
    विज्ञापन एवं राजस्व की चिंता के कारण भी कुछ विषयों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे सूचना का चयन प्रभावित होता है।

7.2 पारंपरिक गेटकीपिंग बनाम डिजिटल गेटकीपिंग

आलोचक बताते हैं कि पारंपरिक गेटकीपिंग में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही होनी चाहिए, जबकि डिजिटल गेटकीपिंग में एल्गोरिदम के कारण बिना मानवीय हस्तक्षेप के निर्णय लिए जाते हैं।

  • एल्गोरिदमिक पक्षपात:
    डिजिटल एल्गोरिदम भी पूर्वाग्रहपूर्ण हो सकते हैं, यदि वे गलत डेटा पर आधारित हों।
  • नैतिक जिम्मेदारी:
    डिजिटल प्लेटफार्मों पर नैतिक जिम्मेदारी की कमी से सूचना के चयन में गलतियाँ हो सकती हैं।

8. सामाजिक एवं राजनीतिक प्रभाव

8.1 जनमत निर्माण एवं सूचना का प्रभाव

गेटकीपिंग का समाज पर गहरा प्रभाव होता है, क्योंकि सूचना के चयन से जनमत निर्माण में बदलाव आता है।

  • चुनाव एवं राजनीतिक प्रक्रिया:
    चुनावों के दौरान गेटकीपिंग का प्रभाव यह निर्धारित करता है कि कौन सी खबरें जनता तक पहुँचेंगी, जिससे राजनीतिक प्रक्रिया पर असर पड़ता है।
  • सामाजिक जागरूकता:
    सही सूचना का चयन समाज में जागरूकता एवं सुधार के संदेश को बढ़ावा देता है, जबकि गलत सूचना जनमत में भ्रम पैदा कर सकती है।

8.2 मीडिया की विश्वसनीयता एवं जवाबदेही

सत्यापन, निष्पक्षता एवं जवाबदेही गेटकीपिंग के महत्वपूर्ण आयाम हैं, जो मीडिया की विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं।

  • संपादकीय स्वतंत्रता:
    स्वतंत्र संपादकीय निर्णयों से ही मीडिया का विश्वास अर्जित किया जा सकता है।
  • जनता का विश्वास:
    यदि गेटकीपिंग में पारदर्शिता एवं नैतिकता का पालन होता है, तो जनता का विश्वास मीडिया पर बना रहता है, जिससे लोकतंत्र में सूचना का सही प्रसार सुनिश्चित होता है।

9. भविष्य की दिशा एवं नवाचार

9.1 तकनीकी नवाचार एवं सूचना प्रसारण

भविष्य में डिजिटल तकनीक एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के प्रयोग से गेटकीपिंग प्रक्रिया में और अधिक नवाचार देखने को मिल सकते हैं।

  • एआई आधारित वैरिफिकेशन:
    एआई तकनीक का उपयोग करके फेक न्यूज एवं गलत सूचना की पहचान की जा सकती है, जिससे सूचना का सही चयन सुनिश्चित होगा।
  • एल्गोरिदमिक सुधार:
    भविष्य में एल्गोरिदम में सुधार कर उन्हें अधिक पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाया जा सकता है।

9.2 सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में सुधारात्मक प्रयास

  • नियामक नीतियाँ:
    सरकार एवं नियामक निकाय डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण एवं सूचना की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नई नीतियाँ विकसित कर सकते हैं।
  • जन जागरूकता:
    जनता को सूचना की सत्यता एवं महत्व के बारे में शिक्षित करने के प्रयास गेटकीपिंग की प्रक्रिया में सुधार ला सकते हैं।

9.3 वैश्विक संदर्भ एवं सहयोग

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
    वैश्विक स्तर पर सूचना के चयन एवं प्रसार में अंतरराष्ट्रीय मानकों एवं सहयोग की आवश्यकता है, जिससे गेटकीपिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
  • साझा तकनीकी प्लेटफार्म:
    तकनीकी कंपनियाँ और मीडिया हाउस मिलकर ऐसे प्लेटफार्म विकसित कर सकते हैं, जहाँ सूचना के चयन में मानवीय एवं तकनीकी दोनों दृष्टिकोणों का संतुलन बना रहे।

10. निष्कर्ष

जनसंचार में गेटकीपिंग सिद्धांत एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो न केवल सूचना के चयन एवं प्रसार की प्रक्रिया को समझने में सहायक है, बल्कि समाज, राजनीति एवं संस्कृति पर इसके प्रभावों का भी गहन विश्लेषण करता है। पारंपरिक गेटकीपिंग से लेकर डिजिटल युग में एल्गोरिदमिक चयन तक, इस सिद्धांत के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सूचना का चयन केवल तकनीकी या संपादकीय निर्णय नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कारकों का संयुक्त परिणाम है।

सही गेटकीपिंग से जनता तक सही, सत्यापित एवं संतुलित जानकारी पहुँचती है, जो लोकतंत्र की नींव मजबूत करती है। हालांकि, आज के डिजिटल युग में, जहाँ सूचना का प्रसार अत्यंत तीव्र गति से होता है, गेटकीपिंग प्रक्रिया में नए चुनौतियाँ भी सामने आई हैं – फेक न्यूज, पक्षपातपूर्ण एल्गोरिदम एवं राजनीतिक दबाव। इन चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए, नैतिकता, जवाबदेही एवं तकनीकी नवाचार का संतुलित प्रयोग आवश्यक है।

अंततः, गेटकीपिंग सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि जनसंचार के क्षेत्र में केवल सूचना का प्रसार नहीं, बल्कि उसका सही चयन एवं वितरण ही समाज के विकास, जागरूकता एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस सिद्धांत पर निरंतर शोध एवं सुधार से मीडिया की विश्वसनीयता बढ़ेगी और जनता तक सटीक एवं संतुलित जानकारी पहुँच सकेगी।

संदर्भ

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  9. Digital Media and Gatekeeping: New Challenges and Opportunities, Journal of Media Economics, 2017.
  10. विभिन्न शोध पत्र एवं मासिक लेख, जिनके आधार पर गेटकीपिंग के सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव एवं तकनीकी नवाचारों पर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

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