रंगभूमि में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद | Rangbhoomi me Aadarshonmukh Yatharthvad

भूमिका

प्रेमचंद हिंदी साहित्य के यथार्थवादी और आदर्शवादी लेखक माने जाते हैं। उनके उपन्यास रंगभूमि में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की गहरी झलक मिलती है। यह उपन्यास केवल एक साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि सामाजिक संघर्षों और आम जनता की पीड़ा का दस्तावेज़ है। इसमें आदर्श और यथार्थ के टकराव को कुशलता से चित्रित किया गया है।

रंगभूमि में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का विकास

प्रेमचंद ने इस उपन्यास में समाज के दो प्रमुख ध्रुवों—गरीब किसानों और पूंजीवादी व्यवस्था के बीच संघर्ष को उकेरा है। मुख्य पात्र सूरदास, जो एक अंधा भिखारी होते हुए भी नैतिक और सामाजिक चेतना से परिपूर्ण है, अन्याय और शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है। दूसरी ओर, जमींदारी और पूंजीवादी ताकतें हैं, जो गरीबों की भूमि छीनने का प्रयास करती हैं।

1. यथार्थवादी चित्रण

  • प्रेमचंद ने तत्कालीन समाज की वास्तविक स्थितियों को उभारने के लिए किसानों के शोषण, पूंजीपतियों की नीतियों और प्रशासन की कठोरता को दिखाया है।
  • सूरदास के संघर्ष को एक आम भारतीय किसान की आवाज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे समाज में हर स्तर पर अन्याय का सामना करना पड़ता है।

2. आदर्शवादी दृष्टिकोण

  • प्रेमचंद का आदर्शवाद तब प्रकट होता है जब सूरदास अन्याय के विरुद्ध खड़े होते हैं और समाज में नैतिकता व संघर्ष का संदेश देते हैं।
  • यह उपन्यास पाठकों को प्रेरित करता है कि वे अन्याय के विरुद्ध खड़े हों और सामाजिक बदलाव की दिशा में कार्य करें।

समाज के केंद्रित पहलू

इस उपन्यास में प्रेमचंद ने निम्नलिखित सामाजिक पहलुओं को विशेष रूप से केंद्रित किया है:

1. किसानों का शोषण

भूमिहीन किसानों और श्रमिकों के संघर्ष को प्रमुखता से दर्शाया गया है। उपन्यास में दिखाया गया है कि कैसे पूंजीवादी व्यवस्था गरीबों की ज़मीन हड़पने के प्रयास में लगी रहती है।

2. पूंजीवाद बनाम नैतिकता

व्यावसायिक लाभ की अंधी दौड़ में नैतिकता और मानवीय संवेदनाओं का स्थान गौण हो जाता है। प्रेमचंद ने व्यापारिक हितों और मानवीय मूल्यों के बीच होने वाले संघर्ष को प्रमुखता से दर्शाया है।

3. प्रशासन और सत्ता का अन्याय

सरकारी तंत्र किस प्रकार पूंजीपतियों का समर्थन करता है और गरीबों की आवाज़ को दबाने का प्रयास करता है, इसे भी इस उपन्यास में उजागर किया गया है।

4. सामाजिक जागरूकता और संघर्ष

सूरदास की भूमिका केवल एक भिखारी की नहीं है, बल्कि वे सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं। वे दर्शाते हैं कि जागरूक नागरिक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

निष्कर्ष

रंगभूमि प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक है, जिसमें उन्होंने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को कुशलता से विकसित किया है। यह उपन्यास सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और नैतिक मूल्यों के पतन का यथार्थवादी चित्रण करता है। आदर्श और यथार्थ के संघर्ष के माध्यम से प्रेमचंद यह संदेश देते हैं कि समाज में बदलाव केवल संघर्ष से ही संभव है।

FAQs

1. रंगभूमि में प्रेमचंद का यथार्थवाद कैसे प्रकट होता है?

प्रेमचंद ने किसानों के शोषण, पूंजीवादी ताकतों की नीतियों और प्रशासनिक अन्याय को वास्तविकता के साथ चित्रित किया है, जिससे उपन्यास यथार्थवादी बन जाता है।

2. प्रेमचंद ने रंगभूमि में किस समाजिक पहलू को प्रमुखता दी है?

इस उपन्यास में किसानों के शोषण, पूंजीवाद बनाम नैतिकता, प्रशासनिक अन्याय और सामाजिक जागरूकता को प्रमुखता से केंद्रित किया गया है।

3. रंगभूमि में सूरदास का क्या महत्व है?

सूरदास केवल एक अंधा भिखारी नहीं, बल्कि सामाजिक संघर्ष का प्रतीक हैं। वे अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते हैं और सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता को दर्शाते हैं।

4. प्रेमचंद के अन्य उपन्यासों में भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद दिखता है?

हाँ, गोदान, गबन और निर्मला जैसे उपन्यासों में भी प्रेमचंद ने आदर्श और यथार्थ के संघर्ष को गहराई से चित्रित किया है।

5. रंगभूमि को प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कृति क्यों माना जाता है?

यह उपन्यास केवल कथा नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं को यथार्थवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है, जो इसे हिंदी साहित्य की अमर कृति बनाता है।

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